जातिवादी भीड़तंत्र के सोच के बजाय प्रकरण के गम्भीरता पर हो सीबीआई का उपयोग ---एकसमान पारदर्शी व निष्पक्ष न्याय की आवश्यकता। ---गम्भीर प्रकरण पर खामोशी भविष्य की महाक्रांति बन सकती है। ----जातिवादी सोच को बढ़ावा देश के लिए आसन्न खतरा बनेगी। नैनी, प्रयागराज, 06 अक्टूबर 2020। "मुखिया मुख सो चाहिए खान-पान को एक" परन्तु जब शासन-प्रशासन धृतराष्ट बन जाते हैं तो न्याय हेतु पीड़ित पक्षकार पांडव बनकर धर्म की पुनर्स्थापना हेतु मजबूर होते ही हैं। उपरोक्त बातें करते हुए मीडिया से वार्ता में समाजसेवी अधिवक्ता आर के पाण्डेय ने कहा कि पूरे देश में बलात्कार, हत्या आदि गम्भीर अपराध बहुलता से हो रहे हैं लेकिन जातिवादी वोट बैंक की सोच से जातीय भीड़तंत्र के आगे मात्र कुछ गिने हुए अपराध को जातीय हवा देकर व मीडीयाबाजी करके सीबीआई जांच तक ले जाना व लाखों का मुआवजा, सुरक्षा, घर व सरकारी नौकरी दे देना कितना उचित है? सिस्टम में बैठे जवाबदेह लोगों को तय करना ही होगा कि न्याय पारदर्शी व निष्पक्ष हो। सुशांत केस व हाथरस केस में सीबीआई जांच स्वागतयोग्य है परंतु इन केस से भी बड़े जटिल व भयावह अपराध में सीबीआई जांच न होना प्रश्न खड़ा करता है। सीबीआई जांच की व्यवस्था मात्र जटिलतम केस में होना चाहिए लेकिन आम जनमानस को ऐसा प्रतीत होता है कि सभी सरकारों ने इसे तुष्टिकरण व स्वयं के लाभ का हथियार बना रखा है। कानपुर केस में चार दिन की व्याहता खुशी दूबे के जेल में जाने, बिना आपराधिक इतिहास वाले नाबालिग के इनकाउंटर, बलरामपुर व आजमगढ़ आदि स्थानों के गैंगरेप केस, सवर्णों पर बढ़ते अपराध, पालघर वीभत्स सन्त हत्याकांड आदि पर खामोशी भविष्य के खतरे का अलार्म है। एक जैसे अपराधों में किसी पर चुप्पी तो किसी जातीय विशेष व मजहबी चश्मे के केस में सीबीआई जांच, लाखों के मुआवजे, सुरक्षा, घर, सरकारी नौकरी कितना उचित है? इस पर गम्भीरता से विचार करके एक समान पारदर्शी व निष्पक्ष न्याय की जरूरत है अन्यथा वह दिन दूर नही जब उपेक्षित व पीड़ित परन्तु महज सामान्य वर्ग से जुड़ा होने के कारण न्याय से वंचित एक बड़ा समूह किसी भी वक्त महाक्रांति के लिए सड़कों पर उतरकर न्याय लेने को बाध्य होगा। अतएव परिस्थितियों के भयावह होने से पहले ही विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका में बैठे जवाबदेह लोगों को एक समान पारदर्शी व निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था बनानी ही होगी।