जंघई। श्रीमद्भागवत कथा कुढ़वां गांव में ज्ञान की गंगा बह रही है भागवत कथा के दूसरे दिन प्रयागराज से आए कथावाचक स्वामी श्रीधराचार्य महाराज ने कथा के महात्म को बताया। कहा कि भक्ति, प्रेम, ज्ञान और वैराग्य का संगम है भागवत कथा। श्रीकृष्ण भक्ति की एक मात्र विधि है, वह है मात्र प्रेम है बताया कि आत्मदेव बहुत धनवान थे, लेकिन एक भी पुत्र नहीं होने के कारण चिंतित रहते थे एक दिन आत्मदेव पुत्र की प्राप्ति के लिए संत के पास पहुंचे। संत ने आत्मदेव को एक फल दिया, और पत्नी को खिलाने के लिए कहा। आत्मदेव ने फल पत्नी को दिया, लेकिन पत्नी ने उपहास समझ फल का आधा हिस्सा गाय को एवं आधा सहेली को खिला दी। जब इसकी जानकारी आत्मदेव को हुआ तो चिंता में पड़ गए। सेठ आत्मदेव को चिता में देख पत्नी की सहेली ने बच्चा जन्म के बाद सेठ की पत्नी को सुपुर्द करने का प्रण लिया। ठीक नौ माह बाद सहेली के साथ गाय ने एक मानव पुत्र को दिया। गाय के पुत्र का नाम गोकर्ण हुआ, और दूसरे का नाम धूंधकारी। गोकर्ण एक विद्वान पंडित हुआ, जबकि धूंधकारी विपरीत अय्याश और जुआरी हुआ। बताया कि सुख और दुख मनुष्य के परिणाम का एक फल है, जो उसके कर्म पर निर्भर करता है मानव कर्म में प्रेम, ज्ञान, विवेक और वैराग्य आवश्यक है तभी मनुष्य सुखी रह सकता है। इस अवसर पर मुख्य यजमान दीवाकर मिश्र श्यामा देवी, सुधाकर मिश्र निर्मला देवी, गायत्री प्रसाद मिश्र, प्रभाकर मिश्र, डाक्टर बालकृष्ण मिश्र, दिलीप मिश्र, आचार्य मनमोहन पांडेय, संदीप मिश्रा, सुरेश पांडेय, राधेकृष्ण, श्रीकृष्ण मिश्र, सुशील, जितेंद्र, अभय मिश्र, सत्यप्रकाश, निर्भय, प्रवीण मिश्र, शिवकुमार, देवीशंकर, नितेश, देवेन्द्र, आदित्य, अमन, अभिनव, अद्वेत सहित तमाम लोग मौजूद रहे।