जंघई। गोपालापुर के पूर्व प्रधान अभयराज मिश्र के निवास पर आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन कथावाचक स्वामी हरिप्रपन्नाचार्य महाराज ने उधव चरित्र, महारासलीला व रुक्मिणी विवाह का वर्णन किया। महाराज ने कहा कि गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की। भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों की इस कामना को पूरी करने का वचन दिया।

अपने वचन को पूरा करने के लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया। इसके लिए शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया। सभी गोपियां सज-धजकर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गईं। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था। इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया। माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखाई थी, जितनी गोपियां उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए। सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य व प्रेमानंद शुरू हुआ। रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुऐ कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को हराकर विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। मौके पर श्रीकृष्ण व रुक्मिणी विवाह की झांकी प्रस्तुत कर विवाह संस्कार की रस्मों को पूरा किया गया। कथा के पश्चात आरती प्रसाद का वितरण किया गया जिसमें मुख्य यजमान इंद्रावती देवी उदयराज मिश्र, सावित्री अभयराज मिश्र, शकुंतला खेमराज मिश्र, सीता देवी श्याम राज मिश्र, सुशीला देवी अवध राज मिश्र, शमला देवी प्रेमराज मिश्र, सविता धर्मराज मिश्र एवं कार्यक्रम संचालकों में अनुज महाराज, अभिषेक शुक्ला, गंगाधर पांडेय, कल्लू पंडित, कुल गुरू अखिलेश त्रिपाठी, कुल पुरोहित जगदंबा प्रसाद शुक्ल, दुर्गा प्रसाद शुक्ल, उदयराज मिश्र एवं बाबा मिश्रा, देवेंद्र दुबे, विमलधर दुबे, राकेश धर दुबे, हरिश्चंद्र दुबे, रमेश प्रताप सिंह, भरत मिश्र, रतन मिश्र, परिजनों में धर्मेंद्र, जितेंद्र, मनोज, संजय, अरविंद, राजू, दीपक, आशीष, दिलीप, अतुल, संदीप, कुलदीप, मयंक, मंथन, यश, हर्ष, दिव्यांश, युग, बिवान, आरव, मानसी, मान्या, सौम्या, पीहू, श्रीनिधि, कामना, सुनिधि, बैदेही आदि लोग मौजूद रहे।