हरिद्वार। पतंजलि योगपीठ के ऋषि ग्राम में योग गुरु बाबा रामदेव की प्रेरणा से प्रथम बार आयोजित सन्यास दीक्षा कार्यक्रम को संबोधित करते योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि संन्यास परंपरा हमारे पूर्वज ऋषि ऋषिकायों की वह आदर्श गरिमामयी और वर्णनीय परंपरा है, जिसमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना को आधार बनाकर एक पिंड में सिमटी हुई चेतना को पूरे ब्रह्मांड में विस्तृत कर देना होता है। संन्‍यासी होना दुनिया का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व है और मानव जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि। समस्त ऋषि ज्ञान परंपरा व संपूर्ण भारतवर्ष के लिए है गौरव का विषय है। अर्थात यह मार्ग सेल्फ रियलाइजेशन से कलेक्टिव रियलाइजेशन का तथा व्यष्टि से समष्टि के उत्थान का है। विरजा होम के बाद मधुअर्क भी दिया गया इसे स्वयं योग गुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने वितरित किया। गत बुधवार से चल रहे चतुर्वेदी यज्ञ का विधिवत समापन भी हुआ। पतंजलि योगपीठ द्वारा पिछले 25 वर्षों से मां भारती की सेवा में अनेक प्रयास किए गए उन्हीं प्रयासों में एक वैदिक ऋषि ज्ञान परंपरा के प्रकल्प के रूप में वैदिक गुरूकुलम वैदिक कन्या गुरुकुलम है, जहां दिव्य आत्माएं ऋषि ज्ञान परंपरा को आत्मसात करती है। योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि संन्यासी होना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह दूसरा दिव्य जन्म है। अविवेकपूर्ण बंधनों और आसक्ति से मुक्ति है। योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि हमारे पूर्वज ऋषि ऋषिकावों की पवित्र सनातन, गरिमामयी और व्रणीय संन्यास परंपरा एक आध्यात्मिक व्यक्ति, आध्यात्मिक परिवार, आध्यात्मिक समाज और आध्यात्मिक भारत बनाने के लिए आधार हैं। शास्त्र कहते हैं कि जिस कुल खानदान में एक भी व्यक्ति संन्यासी हो जाता है तो उसका सारा कुल पवित्र हो जाता है। उन्होंने कहा कि 2050 तक भारत को विश्व की आध्यात्मिक व आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रतिष्ठापित करने के लिए पूर्ण पुरुषार्थ करने का संकल्प लें। संन्यास दीक्षा से पूर्व सेवा व्रतियों ने मुंडन संस्कार कराया। विरजा होम में हिस्सा लिया। विरजा होम में दीक्षित होने वाले अपने अंदर की अशुद्धि को पूर्ण त्याग कर पूर्ण जीवन जीने का संकल्प लेते हैं।