इंडोनेशिया के दौरे पर पहुंचे पीएम मोदी ने और राष्ट्रपति जोको विदोदो के बीच रक्षा सहयोग के 15 समझौतों पर दस्तखत हुए। इनमें व्यापक रणनीतिक साझेदारी और भारत-प्रशांत क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता पर भी सहमति बनीं। इंडोनेशिया ने भारत को सामरिक रूप से अहम सबांग बंदरगाह के आर्थिक व सैन्य इस्तेमाल की मंजूरी भी दे दी है। इसे लेकर दोनों देशों की रणनीति में चीन को करारा झटका लगा है। चीन अक्सर पूर्वी व दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत दिखाता रहा है ऐसे में भारत-इंडोनेशिया के बीच समुद्री सहयोग पर साझा विजन को चीन के लिए झटका भी माना जा रहा है। चीन ने दक्षिण व पूर्वी सागर के कई द्वीपों पर कब्जा कर वहां सैन्यीकरण कर रखा है। ऐसे में भारत को सबांग बंदरगाह के सैन्य व आर्थिक इस्तेमाल की अनुमति मिलना चीन की परेशानी का सबब होगा, क्योंकि अंडमान निकोबार द्वीप समूब से 710 किलोमीटर दूर स्थित इस बंदरगाह में चीन भी दिलचस्पी ले रहा था। भारत यहां आर्थिक जोन में निवेश करने के साथ-साथ एक अस्पताल भी बनाएगा। सबांग बंदरगाह सैन्य व आर्थिक रूप से काफी अहम है। यहां से कच्चे तेल के जहाज भी गुजरते हैं और इस इलाके से भारत का 40 फीसदी समुद्री व्यापार होता है। कारोबार या सामरिक मामलों में चीन हमेशा भारत पर निगाह रखता है, ऐसे में मोदी की इस रणनीति से चीन में प्रतिक्रिया होना लाजमी है। सामरिक लिहाज से सबांग बंदरगाह की गहराई 40 मीटर है जो पनडुब्बियों व हर तरह के जहाजों के लिए एकदम उपयुक्त है। द्वितीय विश्य युद्ध के समय जापान ने इस द्वीप पर सैन्य ठिकाना बनाया था। तभी से चीन ने सबांग इलाके के इस्तेमाल और विकास के प्रति दिलचस्पी रखता है। प्रधानमंत्री ने जोको विदोदो से वार्ता के बाद कहा कि भारत और इंडोनेशिया अपने रिश्तों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक ले जाएंगे। विदोदो के साथ हुई बैठक में भारत-इंडोनेशिया के बीच रक्षा, विज्ञान, तकनीक, रेल और स्वास्थ्य के क्षेत्र में 15 एमओयू पर हस्ताक्षर भी हुए। दोनों नेताओं ने समुद्री, आर्थिक और सामाजिक संस्कृति के साथ-साथ वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की।