लखनऊ।वर्तमान अर्थ के इस युग में अर्थ अर्जन की आपाधापी में आधुनिक समाज में प्लास्टिक मानव-शत्रु के रूप में उभर रहा है। समाज में फैले आतंकवाद से तो छुटकारा पाया जा सकता है, किंतु प्लास्टिक से छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है, क्योंकि आज यह हमारे दैनिक उपयोग की वस्तु बन गया है। आंख खुलते ही शुरू होने वाला प्लास्टिक का उपयोग रात की नींद के साथ ही बंद होता है| गृहोपयोगी वस्तुओं से त्रिपाठीलेकर कृषि, चिकित्सा, भवन-निर्माण, विज्ञान सेना, शिक्षा, मनोरंजन, अंतरिक्ष, अंतरिक्ष कार्यक्रमों और सूचना प्रौद्योगिकी आदि में प्लास्टिक का उपयोग बढ़-चढ़कर हो रहा है।स्वार्थी एवं उपभोक्तावादी मानव ने प्रकृति यानि पर्यावरण को पॉलीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित किया और करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण पूरी तरह आहत हो चुका है विकास की कीमत प्रकृति का किस स्तर तक नुकसान करके मानव चुकाएगा यह कह पाना बड़ा मुश्किल है| प्लास्टिक विदेशी से घिरा मानव कहीं प्रकृति और खुद के अस्तित्व को नष्ट ही ना कर ले |आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है, जाने अनजाने मानव ने अपने जीवन में एक खतरनाक विष का जाल बना लिया है जिसमें कीड़े मकोड़े की तरह हम खुद ही फस कर उलझने को विवश हो रहे हैं | प्लास्टिक का उपयोग करना तो बहुत आसान है परंतु उसका निस्तारण , उपयोग करने के बाद सही तरीके से कर पाना बहुत ही मुश्किल साबित हो रहा है | सही तरीके से निस्तारित ना होने पर प्लास्टिक कचरा हमारे जमीनों की उर्वरा शक्ति कम कर रहा है ऐसे खेतों में पड़ने वाले बीज अंकुरित ही नहीं होते , यदि प्लास्टिक कचरा पॉलीथिन के रूप में नालियों में फेंका जाता है तो वह नाली और नाले को अवरुद्ध करता है , प्लास्टिक थैली में फेंका गया जूठन हमारे पशुओं में कैंसर फैला रहा है |हिमालय की वादियों से लेकर समुद्र की गहराइयों तक हर जगह उचित निस्तारण व्यवस्था ना होने के कारण प्लास्टिक कचरा फैला पड़ा है जिससे प्रकृति का पर्यावरण चक्र बिगड़ने को विवश हो रहा है | कुछ विकसित देशों में प्लास्टिक के रूप में निकला कचरा फेंकने के लिए खास केन जगह जगह रखी जाती हैं। इन केन में नॉन-बॉयोडिग्रेडेबल कचरा ही डाला जाता है। असलियत में छोटे से छोटा प्लास्टिक भले ही वह चॉकलेट का कवर ही क्यों न हो बहुत सावधानी से फेंका जाना चाहिए। क्योंकि प्लास्टिक को फेंकना और जलाना दोनों ही समान रूप से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। प्लास्टिक जलाने पर भारी मात्रा में केमिकल उत्सर्जन होता है जो सांस लेने पर शरीर में प्रवेश कर श्वसन प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसे जमीन में फेंका जाए या गाड़ दिया जाए या पानी में फेंक दिया जाए, इसके हानिकारक प्रभाव कम नहीं होते और प्रकृति के विभिन्न प्रकार के चक्रों को अनियमित करते हैं सो अलग| वर्तमान समय को यदि पॉलीथीन अथवा प्लास्टिक युग के नाम से जाना जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमने शायद इतिहास में विभिन्न सभ्यता देखी कांस्य युगीन सभ्यता , लौह युग ,और अब हम प्लास्टिक युग में विचरण कर रहे हैं अन्य सभ्यताओं ने मानव को विकसित किया परंतु प्रकृति को नष्ट नहीं किया और आज का प्लास्टिक योग हमारे अस्तित्व से ही खिलवाड़ करने में लगा हुआ है| आज सम्पूर्ण विश्व में यह पॉली अपना एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है और दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा और भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएँगे और तब तक सम्पूर्ण पर्यावरण इससे दूषित हो चुका होगा। हमने अपने आने वाली पीढ़ियों को जहरीली हवा ,पानी और भोजन के अतिरिक्त जहर घोलकर पर्यावरण भी दिया है| आज सुबह के टूथपेस्ट से शुरू होकर प्लास्टिक का सफर घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठकगृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों बच्चों के स्कूल बैग तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। आज के समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पॉली में ही दिया जाता है आजकल अक्सर आप ट्रेन से सफर करते हैं तो खिड़की से बाहर देखने पर चमकीली प्लास्टिक के रैपर दूर तक चमकते हुए दिखाई देते हैं, आज मनुष्य पॉली का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है| हम प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें इसके लिए सरकार को हमारे ऊपर तथा प्लास्टिक बेचने वालों पर अर्थदंड लगाना पड़ रहा है| विकास की अंधी दौड़ में हम इतने खो चुके हैं कि हमें अपना अस्तित्व ही नष्ट होता नहीं दिखाई दे रहा आप कल्पना करें भारत में 50% प्लास्टिक एक बार इस्तेमाल होने के बाद फेंक दी जाती है अक्सर इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक बैग खतरनाक केमिकल जायलेन, एथिलीन ऑक्साइड , बेंजीन जैसे केमिकल से मिलकर बनते हैं इनमें रखा हुआ खाना भी प्रदूषित ही नहीं समय के साथ विषैला भी हो जाता है और इस तरह के प्लास्टिक को यदि हम जमीन में दफनाते हैं तो वह जमीन पानी में फेंकते हैं तो वह पानी और कचड़े के रूप में फेंका गया पॉलिथीन तो हजारों सालों तक नष्ट नहीं होता प्लास्टिक कि नॉन बायोडिग्रेडेबल प्रवृत्ति ही हमारे लिए सबसे खतरनाक है| प्रकृति और मानव अनादिकाल से सहचर के भाव में जीवन यापन करते रहे हैं आज वर्तमान समय की महती आवश्यकता है कि हम पहले तो अपने दिनचर्या में प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करें और यदि करें तो यह ध्यान रखें कि वह प्लास्टिक reused, recycled आसानी से की जा सके और धीरे-धीरे यह उपयोग कम से कम कर किए जा सके |आइए सरकार की मंशा के साथ शामिल होते हुए हम सब भी 2 अक्टूबर 2019 को यह शपथ ले कि अपने जीवन में प्रयोग होने वाली ज्यादा से ज्यादा प्लास्टिक की वस्तुओं का त्याग करेंगे और कुछ नहीं तो कम से कम प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर करना हम मनुष्यों का परम कर्तव्य है अगर प्रकृति हमारी रक्षा करती है तो आज की महती आवश्यकता है कि हम अपनी प्रकृति की रक्षा करें?????????? एक प्रयास प्लास्टिक मुक्त भारत बनाने का...... रीना त्रिपाठी