ठंड में सहमी सी बर्फ होती मासूम बच्चों की गर्म सांसे
सर्दियां तो हर वर्ष आती और जाती है पर इस वर्ष की विशेष तौर पर इस बार का अनुभव कुछ अजीब ही था| दिन भर लगभग 9 से 15 डिग्री टेंपरेचर रहा, उस पर चलने वाली बर्फीली हवाओं ने सर्दी को और भी सर्द बना दिया है........ . प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे जोकि अमूमन 6 वर्ष से विद्यालय में प्रवेश करते हैं कहीं-कहीं प्राथमिक सुविधाओं का स्तर यह है कि चटाइया उपलब्ध है, कहीं दरिया, तो कहीं लोहे की बेंच, मिल गई है|
अभी तक बच्चे चटाई में बैठकर सर्दियों में पढ़ा लिखा करते थे तो नीचे से शायद उन्हें ठंड का अनुभव होता था और सिकुड़ते हुए अध्यापक द्वारा दिए गए कार्य को करते थे ,आज तक किसी बच्चे ने नहीं कहा कि उन्हें नीचे से ठंड लग रही है यह बात अलग है कि अध्यापक इस बात का अनुभव करते रहे और कभी-कभी ठंड से बचाने के लिए अगल-बगल पड़े हुए लकड़ी और कूड़े को जलवा कर इन बच्चों को हाथ पैर शिकवा कर गर्म भी करवाया जाता था | आज की ठंड से पूरा शहर कब कब आ रहा है, आज कम से कम लखनऊ शहर के कई विद्यालयों में लोहे की बेंच डेक्स है जो बहुत ही अच्छा है...... और बच्चे उसमें बैठकर पढ़ लिख सकते हैं परंतु अब पता चला पुराने जमाने में लकड़ी की बेंच और टैक्स क्यों डाली जाती थी ........क्योंकि कहीं ना कहीं लकड़ी से ऊष्मा का सुचालक नहीं होता.... इसलिए वह ठंडी नहीं होती...... जी हां बिल्कुल सही सोचा लोहे की बेंच जो 9 से 12 डिग्री टेंपरेचर पर कितनी ठंड हो सकती है इसकी आप कल्पना नहीं कर सकते ....बच्चे दिन भर बैठ कर इसी बर्फ की सिल्ली से भी ठंडी बेंच में अपना काम करते हैं और सहमी हुई आंखों से हमारी तरफ देख कर शायद बिन कहे बहुत कुछ अनकहा सा कह जाते हैं ......आज हम लोग लंच कर रहे थे बगल में बच्चों की बेंच डेक्स खाली पड़ी थी मुझे लगा इसी में बैठकर लंच किया जाए और बैठते ही एहसास हुआ...... कि बाबा रे कितनी ठंडी है और.............. आप कल्पना करें कि छोटे छोटे बच्चे जो 6 साल के हैं या उससे थोड़े बड़े इतनी ठंड में उन बच्चों में दिनभर या कहें 6 घंटे बैठकर काम कर रहे हैं वाकई बहुत ही सहनशील होते हैं प्राथमिक स्कूलों के बच्चे........ आज बच्चों के पास एक पतली सी पैंट है जिससे ठंड क्या रुकती होगी.. भगवान ही मालिक है ......
हां बच्चों के पास स्वेटर है वह शायद एक शर्ट में नहीं है पर सभी जानते हैं कि वह कितने मोटे हैं पर फिर भी.... ठंडी ठंडी बेंच में बैठकर आप इन बच्चों से क्या अपेक्षा करते हैं कि इनकी कोमल उंगलियां पेंसिल को पकड़कर लिखने में सक्षम होगी ?बिल्कुल नहीं .......कहीं ना कहीं यह बच्चों के प्रति किया गया एक अत्याचार है जो हम अध्यापकों को मजबूरी में करना पड़ रहा है क्या यह संभव है कि पारा इतना नीचे गिरने पर और बर्फ की तरह ठंडी हवा चलने पर जिलाधिकारी महोदय को शीतकालीन अवकाश नहीं कर देना चाहिए........... कहते हैं गर्मी की चोट से तो एक बार आदमी बन सकता है परंतु सर्दी कि नहीं छोटी-छोटी विकसित होती हड्डियों में अगर एक बार सर्दी लग गई तो वाकई इन गरीब बच्चों के पास इतना पैसा भी नहीं कि वह अपना इलाज करा सकें और ना ही सरकारी स्कूलों के पास इतने संसाधन की वह बच्चों को सर्दी से बचा सकें।

रीना त्रिपाठी शिक्षिका एवं लेखिका