भगवान परशुराम जी के जयंती पर उनके पिता यमदग्नि ऋषि के आश्रम पर अधिवक्ता रजनीश शुक्ला ने किया साफ सफाई। जौनपुर।भगवान परशुराम जयंती पर जमदग्निपुरम् (जौनपुर) में आदि गंगा गोमती के पावन तट पर जमैथा गांव में स्थित भगवान परशुराम की जन्मस्थली व महर्षि यमदग्नि की तपोस्थलि व आश्रम (बाबा परमहंस) तथा मां रेणुका(मां अखण्ड देवी) के मंदिर में पहुचने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। व साफ सफाई किया गया लाकडॉउन का पालन करते हुए। भगवान परशुराम जी की स्तुति करता हूँ ।भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था इसलिए पूरे देश में इसी दिन उनकी जयंती मनाई जाती है, भगवान परशुराम के यदि वंशज को देखा जाए तो महाराज गाधि की एक मात्र पुत्री सत्यवती व पुत्र ऋषि विश्वामित्र थे,सत्यवती का विवाह ऋचीक ऋषि से हुआ,उनके एक मात्र पुत्र जमदग्नि ऋषि थे। ऋषि जमदग्नि का विवाह रेणुका से हुआ और इनसे परशुराम का जन्म हुआ। भगवान परशुराम का पृथ्वी पर अवतार अक्षय तृतीया के दिन हुआ था,ये भगवान विष्णु के छठे अवतार थे,परशुराम के गुरू भगवान शिव थे। उन्ही से इन्हे फरसा मिला था। लोकगाथा है कि महर्षि जमदग्नि ऋषि जमैथा ( जौनपुर ) स्थित अपने आश्रम पर तपस्या कर रहे थे , तो आसुरी प्रवृत्ति का राजा कीर्तिवीर उन्हें परेशान करता था । जमदग्नि ऋषि तमसा नदी ( आजमगढ़ ) गए, जहां भृगु ऋषि रहते थे, उन्होंने ऋषि को सारी बात बताई, तो भृगु ऋषि ने उनसे कहा कि आप अयोध्या जाइए। वहां पर राजा दशरथ के दो पुत्र राम व लक्ष्मण हैं। वे आपकी पूरी सहायता करेंगे। जमदग्नि अयोध्या गए और राम लक्ष्मण को अपने साथ लाए। राम व लक्ष्मण ने कीर्तिवीर को मारा और गोमती नदी में स्नान किया तभी से ऋषि आश्रम के समीप स्थित घाट का नाम राम घाट हो गया।जमदग्नि ऋषि बहुत क्रोधी थे,परशुराम पिता भक्त थे। एक दिन उनके पिता ने आदेश दिया कि अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दो। परशुराम ने तत्काल अपने फरसे से मां का सिर काट दिया, तो जमदग्नि बोले क्या वरदान चाहते हो, परशुराम ने कहा कि यदि आप वरदान देना चाहते हैं, तो मेरी मां को जिन्दा कर दीजिए। जमदग्नि ऋषि ने तपस्या के बल पर रेणुका को पुनः जिन्दा कर दिया व अखण्ड का वरदान दिया। जीवित होने के बाद माता रेणुका ने कहा कि परशुराम तूने अपने मां के दूध का कर्ज उतार दिया। इस प्रकार पूरे विश्व में परशुराम ही एक ऐसे हैं जो मातृ व पित्रृ ऋण से मुक्त हो गए हैं।भगवान परशुराम जी द्वारा दी गयी धनुष से ही प्रभु श्रीराम जी ने रावण का वध किया ।