जंघई।चनेथू पड़ान गांव में मुख्य यजमान सरोजा देवी एवं कमलेश पांडेय के निवास पर आयोजित संगीतमय शिव महापुराण अमृत कथा में रविवार को कथावाचक आचार्य सुधाकर मिश्र ने नारद मोह का प्रसंग सुनाया। उन्होंने कहा कि भगवान की भक्ति जीव को भवसागर से पार भी करती है अगर भक्ति का अहंकार हो जाए तो अहंकार युक्त भक्ति जीव का पतन भी कर देती है। महाराज ने कहा कि देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त थे भगवान की भक्ति करने के लिए हिमालय की कंदरा में जाकर एक झरने के किनारे बैठ गए बड़ी सुंदर गुफा थी गुफा में बैठते ही देव ऋषि नारद की समाधि लग गई। और भगवान के स्वरूप का आनंद प्राप्त करने लगे देव ऋषि नारद की समाधि को देखकर देवराज इंद्र भयभीत हो गए देवराज इंद्र को लगा कहीं देव ऋषि नारद की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी कहीं मेरा इंद्रासन देव ऋषि नारद को ना दे दें इसलिए इंद्र ने देव ऋषि नारद की समाधि को तोड़ने का प्रयत्न किया। आगे के प्रसंगों में बताया गया कि नारद को भक्ति का अहंकार हो जाता है इस पर भगवान ने माया रची एक सुंदर नगरी बनाई उसमें एक विश्व मोहिनी नाम की कन्या के विवाह तैयारियों की देव ऋषि नारद जब उस नगर के सामने से निकले तो मोहित हो गए माया में फंस गए नारद के मन में आया कि जो इस कन्या से शादी करेगा वह तो पूरे ब्रह्मांड का नायक होगा देव ऋषि नारद भगवान विष्णु के पास गए उनसे अपना स्वरूप मांगा। भगवान विष्णु ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया क्योंकि देव ऋषि नारद का कल्याण चाहते थे भगवान विष्णु कन्या स्वयंवर में उस कन्या ने किसी अन्य राजा की गले में माला डाल दी तो भगवान के पार्षद जय और विजय इस पर हंसने लगे देव ऋषि नारद ने जय और विजय को श्राप दे दिया। और भगवान विष्णु को भी श्राप दे दिया कि तुमने जो आज मेरा बंदर का मुख बनाया है यही आगे चलकर तुम्हारी रक्षा करेगा। भगवान विष्णु ने अपना असली रूप दिखाया तो देव ऋषि नारद का मुंह दूर हुआ देव ऋषि नारद को दुख भी हुआ कि मैंने भगवान को श्राप दे दिया परंतु भगवान ने देव ऋषि नारद को समझाया कि यह सब मेरी इच्छा सेवा है। अहंकार जीव का सबसे बड़ा दुश्मन है किसी बात का भी अहंकार नहीं करना चाहिए कथा में काफी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए कथा के पश्चात आरती प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर आचार्य भानुप्रताप मिश्रा, कैलाश नाथ पांडेय, राजेंद्र प्रसाद पांडेय, मुन्ना पांडेय प्रधान, गोपीनाथ पांडेय, आशाराम पांडेय पूर्व प्रधान, कृपाशंकर पांडेय, शेषमणि पांडेय, विद्यामनि पांडेय, जज्जे पांडेय, राजेंद्र प्रसाद पांडेय, सुरेश पांडेय, विनोद पांडेय, जयशंकर शुक्ला, परमात्मा पांडेय, धीराधर पांडेय, ओमप्रकाश पांडेय, बालकृष्ण पांडेय, पवन प्रीत, दीपक, मनीष, धीरज, महेश, रासुतोष, नीरज, विवेक, विनायक, आर्यन कृष्णा एवं रुद्र पांडेय सहित तमाम भक्तगण मौजूद रहे