प्रयागराज।वन और समाज का एक काव्यात्मक विमर्श है 'वस्तु की विपुलता और शिल्प के संयम का तनाव झेलने की कोशिश करना जीवन और समाज का एक काव्यात्मक विमर्श है । 'वस्तु की विपुलता और शिल्प के संयम का तनाव झेलने की कोशिश करना और उसे सफलतापूर्वक संपादित करना ही जीवन घनत्व है । लगता है देशकाल के विराट् मंच पर वाद्यमंडल बजाया जा रहा है । आदि सृष्टि-दर्शन से अद्यतन कैबरे-कंप्यूटर-रोबोट संस्कृति की महायात्रा को मनुष्य जिस तरह विपरीत समयों के बिंबों, प्रतीकों में गूंथता है, वह अंतर्वाही दृष्टि से संचालित है, भाषिक चमत्कार से नहीं । भारतीय दर्शन की मूल प्रतिज्ञायों के अंतःसूत्रों की बुनावट सृष्टि के विचित्र सम्मिश्रों, मूल्य संक्रमणों और परिवर्तनों को अलग तरह से परावर्तित करती है । रूप, कल्पना, भाव, भाषा और विचार के अनेक बंधनों को तोड़ते हुए, सर्जक के मूल्यान्वेषण से संघर्ष करने की शक्ति सिर्फ़ उच्चतम मानवतावादी अति प्रेरक मनुष्य के अंदर है। सर्वेश कुमार मिश्र जिला अध्यक्ष विश्व हिंदू परिषद गंगापार प्रयागराज'